Dhruv Jurel Father: ध्रुव जुरेल एक युवा और प्रतिभाशाली भारतीय क्रिकेटर हैं जिन्होंने 2024 में इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण किया। वह भारतीय सेना में सेवानिवृत्त हवलदार और कारगिल युद्ध के अनुभवी नेम सिंह जुरेल के बेटे भी हैं। ध्रुव के पिता चाहते थे कि वह सेना में भर्ती हो, लेकिन ध्रुव को बचपन से ही क्रिकेट का शौक था। उनकी मां रजनी जुरेल ने उनके सपने का समर्थन किया और यहां तक कि उनके लिए पहली क्रिकेट किट खरीदने के लिए अपने आभूषण भी गिरवी रख दिए। ध्रुव 2019 में एशिया कप जीतने वाली भारत की अंडर-19 टीम के कप्तान के रूप में प्रसिद्ध हुए। वह एमएस धोनी के भी प्रशंसक हैं और उन्हें अपना आदर्श मानते हैं।
Dhruv Jurel Father कारगिल से राजकोट तक: ध्रुव जुरेल और उनके पिता की प्रेरक यात्रा
राजकोट में इंग्लैंड के खिलाफ तीसरे टेस्ट में जब ध्रुव जुरेल भारत के लिए बल्लेबाजी करने उतरे, तो वह अकेले नहीं थे। उनके साथ उनके पिता का आशीर्वाद, उनकी मां का बलिदान और उनके देश की उम्मीदें थीं। उनके पास एक ऐसी कहानी भी थी जो लाखों भारतीयों को प्रेरित कर सकती थी।
ध्रुव जुरेल, भारतीय सेना के पूर्व हवलदार नेम सिंह जुरेल (Dhruv Jurel father) के बेटे हैं, जिन्होंने 1999 के कारगिल युद्ध में लड़ाई लड़ी थी। नेम सिंह 18 ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट का हिस्सा थे, जिन्होंने पाकिस्तानी घुसपैठियों से टाइगर हिल पर कब्जा किया था। उनकी बहादुरी और साहस के लिए उन्हें सेना मेडल से सम्मानित किया गया था।
नेम सिंह 2008 में सेना से सेवानिवृत्त हुए और अपनी पत्नी रजनी और दो बच्चों ध्रुव और नीरू के साथ आगरा में बस गए। वह चाहते थे कि उनका बेटा भी उनके नक्शेकदम पर चले और सेना में शामिल हो, लेकिन ध्रुव की कुछ और ही योजना थी। वह भारत के लिए क्रिकेट खेलना चाहते थे।
Must Read: कौन हैं ध्रुव जुरेल?
ध्रुव जब चार साल के थे तभी से उन्हें क्रिकेट का शौक था। वह अपने आदर्श एमएस धोनी को टीवी पर देखते थे और उनकी बल्लेबाजी और विकेटकीपिंग कौशल की नकल करते थे। वह आगरा में स्प्रिंगडेल अकादमी में शामिल हुए, जहां उनके कोच परवेंद्र यादव ने उनकी प्रतिभा को देखा और उसे निखारा।
हालाँकि, ध्रुव के लिए क्रिकेट की राह आसान नहीं थी। उनका परिवार एक साधारण पृष्ठभूमि से था और महंगे क्रिकेट उपकरण नहीं खरीद सकता था। उनकी मां रजनी ने उनके लिए पहली क्रिकेट किट खरीदने के लिए अपनी एकमात्र सोने की चेन गिरवी रख दी थी। उनके पिता नेम सिंह ने भी अपने बेटे के जुनून का समर्थन किया, यहां तक कि उनकी सहनशक्ति बढ़ाने के लिए उन्हें तैराकी कक्षाओं में भी भेजा।
ध्रुव की मेहनत और लगन तब रंग लाई जब उनका चयन उत्तर प्रदेश अंडर-16 टीम के लिए हो गया। उन्होंने अपनी बल्लेबाजी और कीपिंग कौशल से सभी को प्रभावित किया और जल्द ही अंडर-19 टीम में जगह बना ली। उन्हें 2018 में श्रीलंका का दौरा करने वाली भारत की अंडर-19 टीम के लिए भी चुना गया था।
ध्रुव के लिए सबसे बड़ा क्षण तब आया जब उन्हें 2019 में एशिया कप के लिए भारत की अंडर-19 टीम का कप्तान बनाया गया। उन्होंने बांग्लादेश के खिलाफ फाइनल में 59 रन बनाकर अपनी टीम को खिताब दिलाया। उन्होंने अपने प्रदर्शन के लिए प्लेयर ऑफ द मैच का पुरस्कार भी जीता।
ध्रुव का भारत के लिए खेलने का सपना तब सच हुआ जब उन्हें 2024 में इंग्लैंड श्रृंखला के लिए टेस्ट टीम के लिए चुना गया। उन्होंने केएस भरत की जगह ली, जिनका पहले दो टेस्ट में खराब प्रदर्शन रहा था। ध्रुव ने राजकोट में तीसरे टेस्ट में पदार्पण किया और पहली पारी में 37 रन बनाए। उन्होंने स्टंप के पीछे चार कैच भी लिए और अपनी चपलता और सजगता दिखाई।
राजकोट में इंग्लैंड के खिलाफ तीसरे टेस्ट में जब ध्रुव जुरेल भारत के लिए बल्लेबाजी करने उतरे, तो वह अकेले नहीं थे। उनके साथ उनके पिता (Dhruv Jurel father) का आशीर्वाद, उनकी मां का बलिदान और उनके देश की उम्मीदें थीं। उनके पास एक ऐसी कहानी भी थी जो लाखों भारतीयों को प्रेरित कर सकती थी।